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खुबसुरत थे वो पल, जब चाँद निकला करता था,
इश्क के गम में वो तन्हा, रात जागा करता था,
अब प्रलय की रात आयी, चाँद अब है खो गया,
लगता है रूठ कर वो, मुझसे जुदा हो गया |
गम-ए-महफ़िल, रात को वो तन्हा हमे छोड़ गए,
जैसे खाली गिलास से, ओंठ रिश्ता तोड़ गए,
जग कहे है प्यार झूठा, इक बार फिर से हो गया,
लगता है रूठ कर वो, मुझसे जुदा हो गया |
रात तन्हा, छत है छोटी, और मुंडेर अब नहीं,
पाँव रखता हूँ मैं ऐसे, जैसे अब कोई डर नहीं,
नींद में चलने लगा हूँ, जैसे पागल हो गया,
लगता है रूठ कर वो, मुझसे जुदा हो गया |
कौन कहता मैं शराबी, नशा मेरा यार है,
जिंदगी ये बेवफा, अब वफ़ा को तैयार है,
मौत अब आती नहीं, जब माँगता दिन रात हूँ,
विष भी आज बन के अमृत, मुझको फिर से ठग गया,
लगता है रूठ कर वो, मुझसे जुदा हो गया |